सुमिरन

जग में मुश्किल जानना, भला बुरा है कौन 
ख़ुद को जानो प्यार से, मदद करेगा मौन
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

तन मन का धुले मैल मेरे प्रभु, निर्मल मन निर्मल तन होवे
बिसरे ना कभी याद तुम्हारी, स्वास स्वास में सिमरन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

मन चरणन में लागे मेरा ,तन चाहे मैला ही ढोये
हे मेरे गिरधर गोपाला, तुमबिन मन बेचैन हो रोये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तुमबिन मनवा बावरा होके, हरदम जगत में इत-उत डोले
मेरे भाव और कृपा मिले तब, इक दूजे से मिलना होवे
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरा पसारा कण-कण में प्रभु, उसका विस्तार हरपल होये
विस्मृत हों दुनिया की सब बातें, जनजन तेरा दर्शन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

ये जीव मोहमाया में डूबा, अवगुण का ही चिंतन होये
तुम्हरी कृपा बरसे बिन कोई, कैसे तन मन निर्मल होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

आनंद सुख की बरखा होये, जीव ब्रह्म का मेल जो होये
मैं कोई संयम नियम ना जानू, न मुझसे अनुशासन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

मन के बहकावे में आकर कुछ न कुछ नित गलती ही होये
विनती सुनो दयानिधे मेरी, बुद्धि मन की मालिक होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरे स्त्रोत स्तुति नित गाऊं मैं, फिर भी मन विचलित क्यों होये
हम हैं अबोध निरीह बालक प्रभु,हे करूणानिधि कृपा होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरी मेरी सत्ता का गोविन्द, कैसे मधुर विलय प्रभु होये
ज्यूँ हो बूँद पानी की श्यामा,सागर मिले तो सागर होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

हो जाओ जागृत राम ह्रदय में, जीव ब्रह्म से विलग न होये
शब्दों की अपनी सीमायें, निर्मल भाव 'मुक्त' न मैला होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

भेदभाव

अब माँ पर भी आ गया सुनो कलयुग का प्रभाव      
स्वार्थ में मिटा देती हैं ...........बच्चों का सद्भाव
गहन विचार उपरान्त माँ को दिया प्रभु का स्थान
प्रेमवितरण में मात के .........प्रभु ना हो भेदभाव
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

वाक़ई

वो लोग खामोश हैं ....जो बहुत जानते हैं 
वो लोग वाचाल हैं .....जो अल्प जानते हैं
ख़ामोश ख़ुद हो गए, सच जानने लगे जब
इस जगत में लोग..वाक़ई..कम जानते हैं
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

१/ सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास

                                             🌹🌹*मुक्त उवाच*🌹🌹

एक छोटा बच्चा कभी ड्राइंग में, पढ़ाई में, खेल में, संगीत में कुछ जीत कर आता है तो हम सभी उसको बहुत शाबाशी देते हैं ..वाह वाह ! क्या बात है ! तुम तो 'स्टार, हो ! 'सुपर स्टार' हो मज़ा आ गया पर आज मैंने जाना कि किसी बच्चे के मन को ये सब कह कर हम उसके अंतरमन में कहीं न कहीं ये बैठा देते हैं कि ये ही उसकी सफलता का पैमाना है ...वो कहीं भी जाए कुछ भी करे उसे उसमे समाज की स्वीकृति और शाबासी लेनी ही है वो मन की करने से बचपन से ही ठिठक जाता है ...
समाज रहा हमेशा उगते सूरज के साथ, "जो चढ़ रहा है, उसे चढ़ाता है और जो गिर रहा हो तो दो लात" ! मैं ये नहीं कह रही कि समाज की राय या स्वीकृति ज़रूरी नहीं ...पर सबसे ज़रूरी है वो कच्ची मिट्टी का ढालना "एक सूंदर मूर्ति" में,जो रब ने हमें बख्शी ..
एक बच्चा अपने अंतर्मन की आवाज़ हमसे बेहतर सुन सकता है उसके अभिभावको को सिर्फ ये ही पूछना था की ये काम करके उसे कैसा लगा क्या उसने ठीक किया क्या इससे अच्छा कर सकते है उसका क्या विचार है उसे क्या लगा कहाँ कमी रही ...इनसभी सवालों के जवाब वो खुद ढूँढ लेगा ....आप तो बस वो कहे, "अच्छा लगा" तो उसे कहो, "अगर अच्छा लगा तो और बेहतर तरीके से कर सकते हो तुम" ....अगर वो कहे, "नहीं मुझे मज़ा नहीं आता इसमें ! तो पूछो क्यूँ ? अगर जायज है तो बोलो "आगे से वो न करना जो तुम्हें दिल में बुरा महसूस कराये" ...अगर उसकी नापसंदगी का कोई विषय वो पढ़ रहा है और पास होने के लिए ज़रूरी है तो उस विषय की महत्ता भी उसे पता होनी चाहिए कि वो अगर उसके पाठ्य क्रम में शामिल है तो क्यूँ ...संतुलित और आसान जीवन पाने का रास्ता वो बालमन खुद ढूँढेगा..आप बस उसका साथ दें, प्यार दें, मार्गदर्शन दें ! हमें क्या चाहिए बस ये कि एक कली सा हमारा बच्चा पूर्ण विकसित हो, पूरा खिले और महकाये खुद को, अपनों को, समाज को, देश को और दुनिया को !
हम बच्चों को समझते हैं अपना हिस्सा या अपना विस्तार, पर ये सच नहीं है..वो एक सम्पूर्ण अस्तित्व है ..जाने अनजाने बहुत से अभिभावक ऐसा करते हैं ,जिनमें पढ़ेलिखे भीं हैं और अनपढ़ भी ,अमीर भी ,गरीब भी...अपनी अपेक्षाओं को बच्चो पर थोपना सही नहीं है ...इससे बच्चे कुंठित हो जाते हैं और कुंठित समाज का सृजन होता है ..और दूरगामी परिणाम देखने को मिलते हैं...
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

तू भाड़ में जा मेरे यार

औरत का करे ना मान
समझे घर का सामान
तेरे तेवर हैं बेकार
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

तेरे ज़ोर की ये आवाज़
ना प्यार का है अंदाज़
तेरा हर लालच बेकार
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

सुरताल का है न ज्ञान
खुद को माने जो महान
न दिल का बजे सितार …
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

जो व्यसनों से लाचार
दिल हो कैसे बेकरार
जब रोज़ होवे तकरार…
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

हर तरफ मच रहा शोर
तेरी वाणी अति कठोर
ये वाणी बनी हथियार …
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

न अपना है न अपनों का
बस महल है सपनो का
झूठों का हुआ संसार ..
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

ये दिल करता चीत्कार
है कैसा इश्क़ बुखार
दर्द का करे व्यापार …
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

माने हमदर्दी को प्यार
जताये रोज़ अधिकार
है स्वार्थ का संसार…
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

सितारों का ये खेल
तेरा मेरा क्या मेल
न क्षितिज हुआ साकार…
तुझे कौन करेगा प्यार
तू भाड़ में जा मेरे यार

गाते रहो विरहा गीत
नहीं बनेंगे तेरे मीत

मत बनो मेरे सरदार …
तुझे कौन करेगा प्यार

तू भाड़ में जा मेरे यार

✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️

बेताब

दिल की धड़कन संभालो. ..यूँ बढ़ने लगी  
ना दिली ख़्वाहिश उछालो.. यूँ बढ़ने लगी
कोई दिल में घुस रहा है....दबे पाँव क्या
बेताब रूह खँगालो.........क्यूँ बढ़ने लगी
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️