प्यार

( नयी पीढ़ी को समर्पित )
खुल के करे प्यार का इज़हार खुदा खैर करे
चमके चमके से हैं अशआर खुदा खैर करे
हासिल इंतज़ार बेकरारी न रह जाय कहीं
तुम्हें इश्क़ कर दे न बरबाद खुदा खैर करे
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

सुरक्षा

तुम इसलिए पैदा नहीं हुईं की बस दुःख झेलो 
नारी निज सुरक्षा की कमां अपने हाथ में लो
घर परिवार समाज देश सब को प्यार बाँटो पर
जीवन का खेल ज़रूर अपनी शर्तों पे खेलो
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

तमस

तमस हो अंतस में जिसके, वो गीत ख़ुशी के गाये क्या 
मावस की हो रात तो बोलो, चाँद कभी इतराये क्या
तमस का डर व दर्द के किस्से, ख़त्म तुम्हें करने होंगे
जिसकी झोली दुःख से भरी, वो ख़ुशी बाँट भी पाए क्या
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

देर आयद दुरुस्त आयद

                  अनु, एक खूबसूरत नारी,कॉलेज की प्रिंसिपल के पद से रिटायर ..दो खूबसूरत बच्चे ,पति एक mnc  कंपनी में ऊंचे पद से रिटायर,दिल्ली में अपना खूबसूरत घर, सुनने में कितना अच्छा ! ...कितनी खुशकिस्मत है वो! ...किसी को कहाँ मिलता है सब कुछ, इतना परफेक्ट जीवन !...अनु सोचते हुए अनायास मुस्कुरा दी ...उसने दिल का दर्द कभी किसी को आभास ही कहाँ होने दिया  ...लबों की मुस्कान और लाल लिपस्टिक ...चश्में में छुप जाती उदास आँखें...और तभी उसे ख्याल आया कि क्या कभी सच में बना सकेगी वो अपना परफेक्ट जीवन? ...
तभी पति की जोरदार आवाज़ कानो से टकराई,"अनु कहाँ हो तुम ?खाने का समय हो गया और तुम्हें ज़रा ध्यान नहीं,खाना लगाओ ...इस औरत को काम करते कितना जोर पड़ता है ? ...शुक्र है, बच्चे यहाँ नहीं रहते ,वर्ना उनको भी भूखा रखती तुम ! अब तो रिटायर भी हो गयी, अब तो समय पर खाना दे दिया करो भई ...तुमसे शादी करके ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी ...कुछ बोलोगी या बहरी भी हो गयीं ? अनु के हाथ लगातार काम कर रहे थे ,कान पति के कड़वे बोल सुन रहे थे,पर मन बगावत पर उतर आया था और दिमाग कुछ सोचने में लगा था, तेजी से! ....ये जीवन के ३५ साल इसीतरह सुनते हुए ,बच्चों के सामने बेइज़्ज़ती कराते हुए बिताये थे उसने ...बच्चे कहते, सब आपकी गलती है ...आप ने ही बिगाड़ा है पापा को, अब आप ही झेलो ...अनु शुरू से शांतिप्रिय थी...उसे पसंद नहीं था जोर जोर से बातें करना,लड़ना ,तमाशा खड़ा करना ...पर अब नहीं.. ये तमाशा बंद होना चाहिए ...सोचने लगी अनु ..बेटा usa में था बेटी uk में...उनसे कभीकभार फ़ोन पर बात होती थी जो औपचारिक हालचाल पर ही ख़त्म हो जाती...
खाना खिला दिया और खा भी लिया उसने, पर दिमाग तेजी से सोच विचार करने लगा ..उसने अपनी करीबी सहेली को फ़ोन किया ,"सुन नेहा ! तुम कह रही थीं न, एक मेड के बारे में, जो काम के साथ अच्छा खाना भी बना लेती है,उसे भेज दो कल सुबह ,प्लीज !"नेहा बोली,' पर तुमने तो मना कर दिया था कि तुम्हारे पति को किसी के हाथ का खाना पसंद नहीं है , फिर ?''वो सब छोड़ो और भेजो तुम, मैं बाद में बात करती हूँ'' अनु बोली... रात बीत रही थी और विचार एक के बाद एक दिल पर दस्तक देने लगे...
अनु का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना प्रभावशाली था कि कॉलेज में अधीनस्थ कर्मचारी ,प्रोफेसर्स ,ही नहीं बच्चे भी उसकी इज़्ज़त करते और सम्मान देते, पर यही घर में पति की आँखों में चुभने लगा, उसपर उसका वेतन हमेशा पति से ज्यादा रहा वो दिनोदिन अहसासे कमतरी का शिकार होने लगा और अब तो पेंशन भी ज्यादा ही मिलती है उसे..कहते हैं ना ''करेला वो भी नीम चढ़ा''...पति उसे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकता था ,न मिले तो ढूँढ लेता ...शुरू शुरू में कोशिश की ज्यादा इज़्ज़त देकर इज़्ज़त पाने की, मगर सब बेकार ! ये करना उल्टा प्रभाव देता गया और पति की उद्दंडता बढ़ने लगी..काश वो शुरू में ही सर उठाती अपने अधिकारों के लिए ...पर कहते हैं कि "देर आयद दुरुस्त आयद" बस अब और नहीं, सोच लिया था उसने ..धीरे धीरे वो नींद के आगोश में समा गयी कल की नयी सुबह के लिए !
सुबह चाय बना रही थी कि घर की बेल बजी खोला तो मेड ही थी ...उसने उसे अंदर आने को कहा ...सभी ज़रूरी बातें पूछीं क्या क्या काम आता है, खाने में क्या क्या बनाती हो, किस समय आओगी, कितने पैसे लोगी आदि आदि ...मेड का नाम रानी था ,अच्छी लगी उसे ..हालात की मारी थी... उसने उसे काम शुरू करने को कहा और चाय लेकर राज के कमरे की तरफ चल दी ..
राज जाग चुके थे.. उसकी तरफ देख तल्खी से बोले, ''आ गयीं आप चाय लेकर ?अहसान है भाई आपका ''
अनु मुस्कुरायी .."आगे से मेरे किसी अहसान की आपको ज़रूरत नहीं ,ये मेरे हाथ की आखिरी चाय आपके लिए ! ...अब से आपका सारा काम रानी ही करेगी, चाय नाश्ता खाना सफाई कपडे सब !अब मेरे ऊपर आपको निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं ..वैसे भी मेरा कोई काम आपको कभी पसंद नहीं आया" ..अनु बोली ..."ओह्ह तो मैडम कहीं जा रही हैं ,पूछने की ज़रूरत नहीं समझी ?'',राज गुस्से से बोले ..."नहीं यहीं हूँ, आज से मैंने अपना कमरा अलग कर लिया है और एक दूसरा टीवी आर्डर कर दिया है,जिससे अपनी पसंद का भी कुछ देख सकूँ ...मैं कहीं भी आऊँ -जाऊँ तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी..अगर कभी प्यार अपनेपन से बात करने का मन करे तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं वर्ना आप अपने में खुश और मैं अपने में ...जीवन का अंतिम पड़ाव मुझे जीना है काटना नहीं "...
राज़ पत्थर-सा खड़ा उसे देख रहा था ..अनु उसके सामने बोल रही थी मगर आवेश में नहीं, बहुत शान्ति से ! ...उसकी दृढ़ता से हैरान कुछ बोल न पाया ..अनु ने अपना सामान कमरे से निकालना शुरू कर दिया था...होठों पे पुराने गीत के बोल थिरकने लगे ...''काँटों से खींच के ये आँचल ...
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

माँ

माँ की आवाज़, माँ की ममता, माँ का आँचल,
माँ की गोद, माँ का सस्नेह आशीर्वाद भरा हाथ
माँ जब न रहे तो, सबकुछ होने के बाद भी
कुछ नहीं का अहसास
दिल का अमूल्य कोना, खाली ! सुनसान !
जो कभी भी भरेगा नहीं
बस प्यार, याद, सीख और अनुशासन
यही अनमोल विरासत है,
जीने का सहारा, उसके बिन
वाणी, विचार, व्यवहार में वो
आज भी जिन्दा है हम में
सच है की वो जाने के बाद भी
आज भी जिन्दा है हम में

✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

वो और लोग थे

हर माँ को अपना बच्चा, लगता है सदा चाँद  
जो तारा कह रहे थे, वो और लोग थे

हमारी आँख का आँसू बस माँ को लगा आँसू
जो ड्रामा कह रहे थे वो और लोग थे

माँ साथ थी बन सहारा कैरियर की राह में
जो टांग खींचते थे वो और लोग थे

हर नाज़ुक वक़्त में समझा रही थी माँ
जो भड़का रहे थे वो और लोग थे

जो लोग हमसे खुश थे चेहरे पे थी चमक
जो जल रहे थे हमसे वो और लोग थे

जब जहाँ से मिट रही थी जीने ही हर वजह
माँ ही बस वजह थी ना और लोग थे
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

सुमिरन

जग में मुश्किल जानना, भला बुरा है कौन 
ख़ुद को जानो प्यार से, मदद करेगा मौन
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

तन मन का धुले मैल मेरे प्रभु, निर्मल मन निर्मल तन होवे
बिसरे ना कभी याद तुम्हारी, स्वास स्वास में सिमरन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

मन चरणन में लागे मेरा ,तन चाहे मैला ही ढोये
हे मेरे गिरधर गोपाला, तुमबिन मन बेचैन हो रोये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तुमबिन मनवा बावरा होके, हरदम जगत में इत-उत डोले
मेरे भाव और कृपा मिले तब, इक दूजे से मिलना होवे
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरा पसारा कण-कण में प्रभु, उसका विस्तार हरपल होये
विस्मृत हों दुनिया की सब बातें, जनजन तेरा दर्शन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो, स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

ये जीव मोहमाया में डूबा, अवगुण का ही चिंतन होये
तुम्हरी कृपा बरसे बिन कोई, कैसे तन मन निर्मल होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

आनंद सुख की बरखा होये, जीव ब्रह्म का मेल जो होये
मैं कोई संयम नियम ना जानू, न मुझसे अनुशासन होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

मन के बहकावे में आकर कुछ न कुछ नित गलती ही होये
विनती सुनो दयानिधे मेरी, बुद्धि मन की मालिक होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरे स्त्रोत स्तुति नित गाऊं मैं, फिर भी मन विचलित क्यों होये
हम हैं अबोध निरीह बालक प्रभु,हे करूणानिधि कृपा होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

तेरी मेरी सत्ता का गोविन्द, कैसे मधुर विलय प्रभु होये
ज्यूँ हो बूँद पानी की श्यामा,सागर मिले तो सागर होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये

हो जाओ जागृत राम ह्रदय में, जीव ब्रह्म से विलग न होये
शब्दों की अपनी सीमायें, निर्मल भाव 'मुक्त' न मैला होये
आओ प्रभु जी ह्रदय विराजो स्वास स्वास तेरा सुमिरन होये
✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️